जगन्नाथ पुरी मंदिर इतिहास एवं रहस्य, HISTORY OF JAGANNATH MANDIR

जगन्नाथ पुरी मंदिर इतिहास एवं रहस्य, HISTORY OF JAGANNATH MANDIR

HISTORY OF JAGANNATH MANDIR — श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर एक रहस्यमयी हिन्दू मंदिर हैं वैसे तो भारत देश हजारों रहस्य और आदिशक्तियों से भरा है जहाँ भगवान इंसान के रूप में जन्म लेते हैं और सामान्य मनुष्य का जीवन जीकर भी कई राज और रहस्य बयां करते हैं दुनिया भर में सबसे अलग सबसे सुंदर और कई रहस्यों को अपने में समाए हुए भारत के हर एक कण कण में, नदियों में, पहाड़ों में, झरनों में, यहाँ की प्रकृति में, यहाँ की संस्कृति में, ईश्वर भक्ति में साधन आराधक योगी और जोगी में।

किसी तरह यहाँ के मंदिर भी अपनी जगह विराजमान होकर कई रहस्यों को अपने सीने में छुपाए हुए है ऐसा ही एक मंदिर है उड़ीसा में जो चारों धामों में से एक है जिसका नाम जगन्नाथ पुरी मंदिर है।

पुरी के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की काष्ठ की मूर्तियां हैं, लकड़ी की मूर्तियों वाला ये देश का अनोखा मंदिर है जगन्नाथ मंदिर की ऐसी तमाम विशेषताएं हैं साथ ही मंदिर में जुड़ी ऐसी कई रहस्यमयी बातें हैं जिनको सदियों से कोई सुलझा नहीं पाया है।

हिंदू धर्म के अनुसार चारधाम बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और पूरी है मान्यता यह है कि भगवान विष्णु जब चारों धाम पर बसे तो सबसे पहले बद्रीनाथ गए और वहाँ स्नान किया इसके बाद वह गुजरात के द्वारिका गए और वहाँ कपड़े बदले उड़ीसा की पुरी में उन्होंने भोजन किया।

पुरी में भगवान श्री जगन्नाथ का मंदिर है, आज हम इस मंदिर से जुड़े ऐसे इन्हीं रहस्यों के बारे में बातें करने वाले हैं जिनका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है।

भगवान श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर खजाने का रहस्य (Jagannath Puri Temple Treasure Mystery)

माना जाता है कि मंदिर के नीचे खजाना दबा है, और मंदिर ऊपर जितनी ऊँचाई पर है नीचे उतनी ही गहराई में भी है मंदिर के खजाने में रुपए, पैसे, रत्न, जवाहरात भी भरे पड़े हैं। 2018 (दो हज़ार अठारह) को उड़ीसा हाईकोर्ट के आदेश पर मंदिर के रत्न भंडार कोष में कड़ी सुरक्षा के बीच सोलह सदस्यों की एक टीम यहाँ जांच के लिए आयी।

इस घटना के लगभग दो महीने बाद ही मंदिर के खजाने की चाबी के गायब होने की बात सुनाई देने लगी, जो अब तक नहीं मिली है खजाना देखकर जब टीम लौटी उसने रत्न भंडार के रक्षक लोकनाथ की मूर्ति के पास शपथ ली थी कि रत्न भंडार से जुड़ी कोई भी बात किसी को नहीं बतायेगी, उनका काम सिर्फ इतना है कि वो ढांचे की मजबूती और सुरक्षा का मुआयना करें। इस दौरान उस भंडार के किसी भी संदूक या रत्न को छूने की इजाजत नहीं थी।

दो हज़ार ग्यारह में ही एकमत से एक मजदूर चांदी की ईट चुराकर ले गया था जिसके बाद यह रहस्य उजागर हुआ, जिसे देखकर सभी सकते में आ गए थे जांच के लिए जब इस मठ की छानबीन की गयी तब सौ करोड़ से भी अधिक की चांदी के ईंटे मिली थी। इसी वजह से मंदिर में खजाने के भंडार का अंदाजा लगाया जा रहा है।

श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर मूर्ति रहस्य (Jagannath Puri Temple Idol Mystery)

भगवान श्री जगन्नाथ पुरी के मंदिर में भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की काष्ठ की मूर्तियां हैं, इस मंदिर की तीनों मूर्तियां हर बारह साल में बदली जाती है पुरानी मूर्तियों की जगह नई मूर्तियां स्थापित की जाती है जिस वक्त मूर्तियां बदली जाती है उस समय पूरे शहर में बिजली काट दी जाती है मंदिर के आसपास पूरी तरह अंधेरा कर दिया जाता है।

मंदिर के बाहर सीआरपीएफ की सुरक्षा तैनात कर दी जाती है उस वक्त मंदिर में कोई भी जा नहीं सकता यहाँ तक कि जो पुजारी मूर्तियों को बदलता है उसकी भी आँखों पर पट्टी बांध दी जाती है हाथों में दस्ताने पहना दिए जाते हैं फिर मूर्तियों को बदलने की प्रक्रिया शुरू होती है लेकिन जो चीज़ कभी भी नहीं बदली जाती वह है ब्रह्म पदार्थ।

ब्रह्म पदार्थ के विषय में वही बताते हैं जो पुजारी मंदिर की मूर्तियां बदलते हैं उनके अनुसार आज तक किसी ने भी इसे नहीं देखा है यहाँ तक कि जो पुजारी इसे पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में लगाते हैं उनकी भी आँखों पर पट्टी बंधी होती है।

भगवान श्री जगन्नाथ ब्रह्म पदार्थ का रहस्य (secret of Jagannath Brahma substance)

मान्यता यह है कि अगर किसी ने इसे देख लिया तो उसकी मौत हो जाएगी, कहा ये भी जाता है कि अगर इस पदार्थ को किसी ने देख लिया तो उसके शरीर के चीथड़े उड़ जाएंगे, इस पदार्थ को हमेशा भगवान श्रीकृष्ण से जोड़कर देखा जाता है।

मूर्ति बदलने वाले कुछ पुजारियों ने यह भी कहा है कि मूर्ति बदलते समय जब यह हाथों में आती है उस वक्त ऐसा महसूस होता है कि हाथों में कुछ उछल रहा है जैसे खरगोश उछल रहा हो कोई ऐसी चीज़ है जिसमें जान है क्योंकि हाथों में दस्ताने होते हैं इसलिए उस पदार्थ के बारे में ज्यादा एहसास नहीं हो पाता, यानी मानते हैं कि ब्रह्म पदार्थ किसी जीवित पदार्थ की भांति है पर वास्तविकता कोई नहीं जानता हैं।

जगन्नाथ पुरी मंदिर निर्माण इतिहास (Jagannath Puri Temple Construction History)

इस रहस्यमय मंदिर का निर्माण कब हुआ था इसके बनने के पीछे भी एक रहस्य है क्योंकि पूरा मंदिर ही रहस्य से भरा हुआ है राजा इन्द्र देव जो मालवा के राजा थे उनको सपने में दर्शन हुए, सपने में ही भगवान विष्णु ने उनसे कहा था कि नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है जिससे नीलमाधव कहते हैं तुम एक मंदिर बनवाओ और उसमें मेरी ये मूर्ति स्थापित करवा दो।

राजा ने नीलांचल पर्वत की खोज करवाई, पर सबर कबीले के लोग नील माधव की पूजा किया करते थे राजा के सेवक ने वहाँ से मूर्ति चुराकर राजा को दी थी इस चोरी से नीलमाधव बहुत दुखी हुए थे इसलिए पुनः उसी गुफा में चले गए परंतु राजा से यह वादा किया कि वो एक दिन जरूर लौटेंगे।

उससे पहले राजा उनके लिए एक विशेष विशाल मंदिर बनवाएंगे राजा ने मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ तो करवा दिया जैसे ही मंदिर पूरा बनकर तैयार हुआ उन्होंने नीलमाधव से विराजमान होने के लिए कहा तब नील माधव ने कहा समुद्र में तैरते हुए लकड़ी के एक बड़े टुकड़े को लाओ और मेरी मूर्ति बनवाओ यह लकड़ी द्वारका से तैरकर पूरी आएगी।

राजा ने इस लकड़ी के टुकड़े को ढूंढ़ तो लिया पर सब लोग मिल कर भी उसे उठा ना पाए। तब राजा ने सबर कबीले के मुखिया से सहायता ली जो कबीला नीलमाधव का सबसे बड़ा भक्त था उस मुखिया ने एक ही हाथ से उस लकड़ी को उठाया और मंदिर में लाकर रख दिया यह देखकर सभी लोग हैरान हो गए।

भगवान जगन्नाथ पुरी मंदिर की अधूरी मूर्तियों का रहस्य (Jagannath Puri Temple incomplete idols mystery)

अब लकड़ी से मूर्ति बनाने की बारी आई तो एक से एक कुशल कारीगर भी उस लकड़ी पर एक भी हथौड़ा चला नहीं पाए। तब भगवान विश्वकर्मा वेष बदलकर आए उन्होंने राजा से कहा कि वो नील माधव की मूर्ति तो बना देंगे पर उनकी एक शर्त है वो इक्कीस दिन में और अकेले ही मूर्ति बनाएंगे उनकी शर्त मान ली गयी।

परन्तु राजा की रानी अपनी जिज्ञासा को रोक नहीं पाईं और रानी के कहने पर राजा ने मंदिर का दरवाजा खोलने का आदेश दे दिया जैसे ही कमरा खुला वह बूढ़ा व्यक्ति नहीं मिला। उसमें तीन अधूरी मूर्तियां थीं भगवान नीलमाधव और उनके भाई के छोटे छोटे हाथ बने थे पर टांगें नहीं थी जबकि सुभद्रा के हाथ पांव बनाए ही नहीं गए थे राजा ने भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया।

तब से लेकर आज तक तीनो भाई बहन इसी रूप में मंदिर में विराजमान हैं मंदिर से जुड़ी एक मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने अपनी देह का त्याग किया और उनका अंतिम संस्कार किया गया तब शरीर के एक हिस्से को छोड़कर उनकी पूरी देह पंचतत्व में विलीन हो गयी माना जाता है कि भगवान कृष्ण का हृदय एक जिंदा इंसान की तरह धड़कता रहा।

श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर के सिंह द्वार का रहस्य (Temple Lion Gate Mystery)

कहते हैं कि वो हृदय आज भी सुरक्षित है और भगवान जगन्नाथ की लकड़ी की मूर्ति के अंदर है जगन्नाथ पुरी मंदिर समंदर के किनारे है मंदिर में एक सिंहद्वार है मान्यता है कि जब तक आप अपने पैरों को सिंह द्वार के बाहर रखोगे चाहे वह एक ही कदम पीछे क्यों न हो तब तक समुद्र की लहरें सुनाई देंगी लेकिन जैसे ही सिंहद्वार के अंदर कदम जाता है लहरों की आवाज़ गुम हो जाती है।

इसी तरह निकलते समय भी जब तक कदम सिंह द्वार के अंदर होंगे लहरों की आवाज नहीं सुनाई देगी पर जैसे ही कदम बाहर आएँगे या आवाज सुनाई देने लगती है ये भी कहा जाता है कि सिंह द्वार के बाहर चिंताओं के जलने की गंध आती है पर जैसे ही सिंहद्वार के अंदर कदम रखोगे गंध दूर हो जाती है।

जगन्नाथ पुरी मंदिर की रसोई का रहस्य (Mystery of Jagannath Puri temple kitchen)

कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है इसमें पांच सौ रसोइए और तीन सौ उनके सहयोगी काम करते हैं मान्यता है कि यहाँ चाहे लाखों भक्त आ जाए कभी भी प्रसाद कम नहीं पड़ा लेकिन जैसे ही मंदिर का गेट बंद होने का वक्त आता है प्रसाद अपने आप ही खत्म हो जाता है यानी यहाँ प्रसाद कभी भी खत्म नहीं होता हैं।

मंदिर में जो प्रसाद बनता है वह लकड़ी के चूल्हे पर बनाया जाता है इस प्रसाद को सात बर्तन में बनाया जाता है इन सातों बर्तनों को एक के ऊपर एक एक करके एक साथ रख दिया जाता है यानी सातों बर्तन चूल्हे पर एक पर एक सीडी की तरह रखे होते हैं सबसे बड़ी हैरानी यह है जो बर्तन सब से ऊपर यानी सातवें नंबर का होता है उसमें सबसे पहले प्रसाद बनकर तैयार हो जाता है इसके बाद क्रमशः छठे पांचवें चौथे तीसरे दूसरे और सबसे अंत में सबसे पहले वाले बर्तन में बनकर तैयार होता है।

जगन्नाथ पुरी मंदिर के झंडे का रहस्य (Jagannath Puri Temple Flag Mystery)

जगन्नाथ मंदिर लगभग चार लाख वर्ग फिट एरिया में है इसकी ऊँचाई दो सौ चौदह फिट है लेकिन इस मंदिर की परछाई कभी किसी ने नहीं देखी। मंदिर के शिखर पर लगा झंडा हर रोज़ बदला जाता है यदि कभी झंडा नहीं बदला गया तो ऐसी मान्यता है कि मंदिर अठारह सालों के लिए बंद हो जाएगा। ये झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में ही उड़ता है मंदिर के शिखर पर सुदर्शन चक्र भी है माना जाता है कि पूरी के किसी भी कोने से इस चक्र को देखो तब उसका मुँह हमेशा देखने वाले की ओर ही नजर आता है।

🙏 भगवान नीलमाधव की कृपा दृष्टि हमेशा आप पर बनी रहे 🙏

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