Kajari Teej | कजरी तीज की कहानी

Kajari Teej | कजरी तीज की कहानी

KAJARI TEEJ — हिन्दू भाद्रमास (भाद्रपद) की तृतीया तिथि को कजरी तीज का पर्व मनाया जाता है कजरी तीज के दिन विवाहित महिलाएँ अपने पति की लम्बी उम्र के लिए निर्जला व्रत करती है इस पर्व को कजली तीज, बूढी तीज और सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है।

मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से सभी कष्ट दूर हो जाते है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है इस दिन सभी महिलाएँ भगवान शिव और पार्वती की पूजा अर्चना करती है कजरी तीज के पर्व पर सुहागिन महिलाएँ अपने पति की लम्बी उम्र के लिए और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती है और शाम को चंद्र उदय होने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य (अरग) देने के बाद ही व्रत खोलती है।

हरतालिका तीज और हरियाली तीज की तरह ही कजरी तीज का पर्व मनाया जाता है इस दिन सुहागिन महिलाएँ अपने पति की लम्बी आयु की कामना के लिए व्रत करती है और तीज माता की पूजा करती है इस व्रत को कुवारी कन्या भी मनचाहे पति के लिए व्रत करती है। यदि कन्या इस व्रत को रखती है और शाम के समय में कजरी तीज की कथा का पाठ करती है तो भगवान शिव जल्दी अच्छे पति को पाने की कामना को पूर्ण कर देते है।

ऐसी मान्यता है की इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती जी ने भगवान शंकर जी को पति के रूप में पाने के लिए किया था इसी लिए महिलाओं के लिए ये व्रत ज्यादा मायने रखता है इस दिन महिलाएं जो गेहू या चने और चावल के तरह – तरह के पकवान बनती है और तीज माता को भोग लगाती है हरियाली तीज की तरह ही महिलाये इस दिन जुला जुलती है और गीत गाती है।

कजरी तीज कब है

इस साल 2024 में कजरी तीज का त्यौहार दिनांक 22 अगस्त 2024, गुरुवार को मनाया जायेगा।

कजरी तीज की तृतीया तिथि का आरंभ 21 अगस्त 2024, बुधवार शाम 5 बजकर 04 मिनट से तृतीया तिथि का समापन 22 अगस्त 2024, गुरुवार दोपहर 1 बजकर 41 मिनट पर होगा।

इसलिए कजरी तीज पूजा का शुभ मुहूर्त 22 अगस्त 2024, गुरुवार सुबह 7:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक हैं।

कजरी तीज व्रत कथा व पूजा विधि | KAJARI TEEJ KATHA
कजरी तीज की कहानी | KAJARI TEEJ

कजरी तीज पूजा विधि (Kajari Teej Puja)

कजरी तीज के दिन शिव और पार्वती की उपासना की जाती है इस दिन नीमड़ी माता की पूजा का विधान है नीमड़ी माता को माँ पार्वती जी का ही स्वरूप माना जाता है।

पूजा के लिए तालाब के जैसे आकृति बनाने के लिए मिटी की पाल बनाई जाती है और तालाब मध्यम में नीम की एक डाली लगाई जाती है और उसके ऊपर लाल रंग की सुनरी डाली जाती है।

इसके बाद आप कलश की स्थापना करें। कलश पर कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बना ले और उसके मुख पर मोली बांध ले कलश में शुद्ध जल भर ले और उसमें हल्दी, सिक्का, अक्षत (चावल) एवं फूल आदि डालें।

अब विधिवत नीमड़ी माता की पूजा के लिए तालाब में कच्चा दूध भरा जाता है फिर एक दीपक जलाया जाता है इसके बाद महिलाओं को तालाब के पास कुमकुम, मेहंदी और काजल की सात-सात बिंदी लगानी होती है एवं अविवाहित महिलाओं को सोलह-सोलह बिंदी लगानी होती है।

फिर रोली (मोली), अक्षत (चावल), केले, सेब, नींबू, ककड़ी और सुहागिन औरत के सुहाग का सामान आदि सभी चीजों का प्रतिबिम्ब महिलाएं तालाब में देखकर उन्हें चढ़ाया जाता है इसके पश्चात घी और मेवे से बना प्रसाद चढ़ाया जाता है इस दिन खासकर सत्तू के लड्डू का भोग लगाया जाता है।

इसके बाद कजरी माता की कथा सुनें और नीमड़ी माता की कथा सुनें।

इस दिन पूजा के बाद जब चंद्र उदय हो जाये तो चन्द्रमा को रोली, चावल, कुमकुम अर्पित करें भोग लगाए। उसके बाद चांदी की अंगूठी और गेंहू के दानों को हाथ में लेकर चन्द्रमा को अरग (अर्घ्य) देते है और अपने स्थान पर खड़े हो कर परिक्रमा करें और ध्यान रहे कि तीज माता को भोग लगें सत्तू के लड्डू से अपने व्रत का पारण (उपवास के बाद का पहला भोजन) करें।

जो भी आपने तीज माता को चढ़ाया है पूजा के बाद आप अपनी सास को बाइना दे और पैर चूककर आशीर्वाद ले। 🙏

कजरी तीज चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि

कजरी तीज पर संध्या के समय नीमड़ी माता की पूजा के बाद चांद को अर्घ्य देने की परंपरा है।

  • चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मोली, अक्षत चढ़ायें और फिर भोग अर्पित करें।
  • चांदी की अंगूठी और आखे (गेहूं के दाने) हाथ में लेकर जल से अर्घ्य दें और एक ही जगह खड़े होकर चार बार घुमें।

कजरी तीज व्रत के नियम (Kajari Teej rules)

  1. यह व्रत सामान्यत: निर्जला रहकर किया जाता है। हालांकि गर्भवती स्त्री फलाहार कर सकती हैं।
  2. यदि चांद उदय होते नहीं दिख पाये तो रात्रि में लगभग 11:30 बजे आसमान की ओर अर्घ्य देकर व्रत खोला जा सकता है।
  3. उद्यापन के बाद संपूर्ण उपवास संभव नहीं हो तो फलाहार किया जा सकता है।

कजरी तीज व्रत कथा (Kajari Teej Katha)

🙏🙏 कजरी तीज व्रत कथा प्रारम्भ 🙏🙏

एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था जो बहुत गरीब था। उसके साथ उसकी पत्नी ब्राह्मणी भी रहती थी। इस दौरान भाद्रपद महीने की कजली तीज आई। ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत किया। उसने अपने पति यानी ब्राह्मण से कहा कि उसने तीज माता का व्रत रखा है। उसे चने का सतु चाहिए। कहीं से ले आओ। ब्राह्मण ने ब्राह्मणी को बोला कि वो सतु कहां से लाएगा। सातु कहां से लाऊं। इस पर ब्राह्मणी ने कहा कि उसे सतु चाहिए फिर चाहे वो चोरी करे या डाका डालें। लेकिन उसके लिए सातु लेकर आए।

रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकलकर साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने साहूकार की दुकान से चने की दाल, घी, शक्कर लिया और सवा किलो तोल लिया। फिर इन सब से सतु बना लिया। जैसे ही वो जाने लगा वैसे ही आवाज सुनकर दुकान के सभी नौकर जाग गए। सभी जोर-जोर से चोर-चोर चिल्लाने लगे।

इतने में ही साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया। ब्राह्मण ने कहा कि वो चोर नहीं है। वो एक एक गरीब ब्राह्मण है। उसकी पत्नी ने तीज माता का व्रत किया है इसलिए सिर्फ यह सवा किलो का सातु बनाकर ले जाने आया था। जब साहूकार ने ब्राह्मण की तलाशी ली तो उसके पास से सतु के अलावा और कुछ नहीं मिला।

उधर चांद निकल गया था और ब्राह्मणी सतु का इंतजार कर रही थी। साहूकार ने ब्राह्मण से कहा कि आज से वो उसकी पत्नी को अपनी धर्म बहन मानेगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर दुकान से विदा कर दिया। फिर सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह से ब्राह्मण के दिन सुखमय हो गए ठीक वैसे ही कजली माता की कृपा सब पर बनी रहे।

🙏🙏 कजरी तीज व्रत कथा समापन 🙏🙏

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